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पाकिस्तान ने इस मामले का समाधान ‘द्विराष्ट्र सिद्धांत’ में तलाशने की वकालत की है. वहीं, पाकिस्तानी मीडिया के एक धड़े ने दोनों पक्षों से ‘सब्र रखने’ की अपील की है.शनिवार को हुए हमले के बाद इसराइल ने ‘जंग’ का एलान कर दिया. हमास के हमले में इसराइल को बड़ा नुक़सान हुआ और उसके बाद जवाबी कार्रवाई में कई फ़लस्तीनियों के मारे जाने की ख़बर है.अमेरिका और पश्चिम के दूसरे देशों ने इसराइल के ‘आत्मरक्षा के अधिकार’ का समर्थन किया है.

इसी के बाद पाकिस्तान के मीडिया के एक धड़े ने इसराइल और हमास से ‘सब्र’ दिखाने की गुजारिश की है. पाकिस्तान नेताओं में से कुछ तटस्थ रुख अपनाते दिखे तो कुछ फ़लस्तीनियों के साथ खड़े दिखने में गुरेज नहीं किया. सोशल मीडिया पर कई लोगों ने फ़लस्तीनी लोगों के हक़ में बात की.

पाकिस्तान के कामचलाऊ प्रधानमंत्री अनवर उल हक़ काकड़ ने ‘फ़लस्तीनी सवाल’ को हल करने पर ज़ोर दिया.पाकिस्तान के पीएम काकड़ ने शनिवार को सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर कहा, “हम सब्र दिखाने और आम नागरिकों की हिफ़ाजत किए जाने की गुजारिश करते हैं.”पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ का रुख अलग था. उन्होंने इसराइल के ‘अवैध कब्ज़े को ख़त्म करने’ की अपील की.पाकिस्तान की सीनियर नेता शिरीन मज़ारी ने इसराइल पर हमास के हमले को ‘ऐतिहासिक लम्हा’ बताया.उन्होंने सोशल प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर लिखा, “अब ये इंसानी जांबाज़ी और निडरता के जज्बे बनाम हाईटेक मिसाइलों और बमों के बीच की जंग है. ”

नरमपंथी रुख वाले दैनिक अख़बार ‘डेली टाइम्स’ ने आठ अक्टूबर के अपने संपादकीय में लाखों लोगों की जान बचाने के लिए सब्र दिखाने को एक मात्र रास्ता बताया.अख़बार ने लिखा, “अगर लाखों आम नागरिकों को बचाना है तो इस वक़्त इकलौता रास्ता यही है कि अधिकतम सब्र से काम लिया जाए. ”

एक अन्य प्रमुख अख़बार ‘डॉन’ ने फ़लस्तीनियों को बड़ा नुक़सान हो सकने की आशंका जाहिर की है.आठ अक्टूबर के अपने संपादकीय में डॉन ने लिखा है, “इसराइल की ऐतिहासिक तौर पर ख़ून की प्यास की जानकारी होने के नाते लगता है कि फ़लस्तीन के लोग ख़ासकर गज़ा में रहने वाले बड़ी कीमत चुकाएंगे.”अख़बार ने लिखा है, “सभी पक्षों को सब्र दिखाना चाहिए और आम नागरिकों को निशाना बनाने से बचना चाहिए. ”डॉन ने लिखा है कि इसराइल के विदेशी मित्र भी उसके पास ‘आत्मरक्षा का अधिकार’ होने का राग अलाप रहे हैं.अख़बार आगे लिखता है, “हालिया तनाव तमाम मुस्लिम देशों के इसराइल के साथ संबंध सामान्य करने की कोशिशों पर भी सवालिया निशान लगाते हैं.”

देश के एक और प्रमुख अख़बार ‘पाकिस्तान टुडे’ ने भी ऐसा ही सवाल उठाया है.पाकिस्तान टुडे ने अपने संपादकीय में लिखा है, “ ये संघर्ष अचानक ऐसे समय में भड़क उठा है जब सऊदी अरब की अगुवाई में तमाम मुसलमान देश इसराइल को मान्यता देते की ओर बढ़ते दिख रहे हैं. ”अखबार ने आगे लिखा, “ये पैटर्न तो जाना पहचाना है लेकिन शायद इसका पैमाना अभूतपूर्व है. ”अख़बार ने लिखा है कि इस समस्या का स्थायी समाधान मिलना आसान नहीं दिखता है.पाकिस्तान टुडे कहता है, “(समस्या का) वास्तविक समाधान तब तक नहीं मिल सकता जब तक फ़लस्तीनी लोगों को उनका वाजिब हक़ न मिले और उनकी ज़मीन से अवैध कब्ज़ा ख़त्म नहीं होता.”

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