खबर उत्तराखंड से जहाँ मानव वन्यजीव संघर्ष को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाई है। हाईकोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई और कहा कि या तो आदेशों का अनुपालन करें या फिर प्रमुख सचिव वन कोर्ट में उपस्थित हों।
जी हाँ,देहरादून निवासी अनु पंत की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सरकार द्वारा मानव वन्यजीव संघर्ष में निष्क्रिय रहने पर गंभीर टिपणी की। खंडपीठ की अगुवाई मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायाधीश अलोक वर्मा ने की। उन्होंने अपने हाल ही के आदेश में यह बात स्पष्ट की थी कि मानव वन्यजीव संघर्ष की रोकथाम करने के लिए दिए गए पूर्व दिशा निर्देशों पर सरकार ने कोई कार्यवाई नहीं की है।
बता दें कि नवंबर 2022 में जब इस मामले की सुनवाई हुई थी तब हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव वन को दिशा निर्देश दिए थे कि मानव वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए विशेषज्ञों की समिति गठित करें, जिनको जमीनी हकीकत और असल में धरातल पर काम करने का तजुर्बा हो। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि प्रमुख वन संरक्षक विनोद सिंघल की ओर से दाखिल शपथपत्र में केवल कागजी कार्रवाई का उल्लेख था और धरातल पर स्थिति सुधारने के लिए किस तरीके से मानव वन्यजीव संघर्ष को रोका जा सकता है, इसकी कोई रुपरेखा नहीं थी। दोबारा जब मामले की सुनवाई हुई तब सरकार की ओर से खुद ही हाईकोर्ट को यह बताया गया कि कोर्ट के पूर्व के इस आदेश की अनुपालना नहीं हुई है जिसमे समिति गठित करने के लिए कहा गया था।
दरअसल,इसके लिए सरकार की ओर से और समय मांगा गया था । मामले में गंभीर टिपणी करते हुए कार्यवाई के लिए अंतिम अवसर देते हुए हाईकोर्ट ने सरकार को दो सप्ताह का समय दिया है और यह भी कहा कि अगर समय से कार्यवाई नहीं होती तो प्रमुख सचिव वन आरके सुधांशु हाईकोर्ट में उपस्थित होंगे। मामले की अगली सुनवाई 22 मई 2023 को होगी।