दिल्ली के साथ ही भारतीय गंगा मैदान (आईपीजी )का प्रदूषण पहाड़ों की सेहत भी खराब कर रहा है। मैदान से पराली जलने वाहनों के ईंधन से निकलने वाला धुआं और धूल के कारण 2 से 3 दिन में हिमालई क्षेत्रों में पहुंच रहे हैं। जी हां शीतकाल में तापमान की कमी और नमी की वजह से प्रदूषित तत्व घाटी क्षेत्रों में हवा के साथ घूम रहे हैं जो स्थानीय निवासियों और वनस्पतियों की सेहत के लिए अच्छा नहीं है।
आपको बता दें कि भारतीय उषणदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम )के मुताबिक मॉनसून के बाद हिमालय क्षेत्र के प्रदूषण में कितनी वृद्धि हो गई है शीतकाल में हालत और खराब हो सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक प्रदूषण से बचने के लिए विकल्प तलाशने होंगे और इसके लिए सभी को साथ मिलकर काम करना होगा।
वहीं आईआईटीएम और एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमालय क्षेत्र में ब्लैक कार्बन की स्थिति पर अध्ययन कर रहे हैं। आईआईटीएम दिल्ली के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ अतुल कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि उत्तरी क्षेत्र पूर्ण रूप से हिमालय से घिरा हुआ है यहां जो भी प्रदूषण उत्सर्जित होगा वह शीतकाल में तापमान कम होने से वातावरण में घूमता रहता है और सतह के निकट ही रहता है।
मानसून से पहले जब तेज हवा का सीजन शुरू होता है तो प्रदूषक तत्व 2 से 3 दिन में हिमालय क्षेत्रों में हवा के साथ पहुंच जाते हैं। उन्होंने बताया कि शीतकाल में तापमान कम होने से या प्रदूषक तत्व घाटी क्षेत्रों में घूमते रहते हैं जिसके कारण घाटी क्षेत्रों में लोगों को धुंध की समस्या झेलनी पड़ती है। ग्रीष्म काल में यह तत्व उच्च हिमालई क्षेत्रों में पहुंच जाते हैं जो प्ले शेरों की सेहत के लिए अच्छा नहीं है इसलिए सभी सरकारों को मिलकर कार्बन वह हानिकारक तत्व का उत्सर्जन रोकने के लिए नीति बनानी होगी वाहनों का कम से कम इस्तेमाल होना चाहिए साथी ऐसे ईंधन का प्रयोग करना होगा जो कम कार्बन उत्सर्जन करें।
डॉ अतुल कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि ब्लैक कार्बन का जो डाटा मिला है वह काफी खराब स्थिति को बयां कर रहा है और ग्रीष्म काल में चार से 6 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था। अक्टूबर में यह लगभग 12 से 15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया है यानी कि 2 से 3 गुना वृद्धि हुई है इसकी वजह वाहनों का इंधन पराली जलाना और अन्य गतिविधियां हैं।