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खबर जम्मू कश्मीर से सम्बंधित है ।जम्मू कश्मीर का डोमिसाइल पाकर हर किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट दिखी । हर किसी के चेहरे पर संतुष्टि का भाव था। इसका कारण था , देहरादून में शरणार्थियों को कई साल के बाद कश्मीर में मताधिकार से लेकर अपनी संपत्ति पर कानूनी दावा ठोकने और वहां का दोबारा नागरिक बनने का हक मिला।जी हाँ,गुरुवार को शिमला बाईपास रोड पर कश्मीर सभा भवन में करीब साढ़े तीन सौ शरणार्थी परिवारों को डोमिसाइल बांटे गए। डोमिसाइल मिलने के बाद लोगों की सालों पुरानी यादें ताजा हो उठीं।


आपको बता दें कि यह शिविर लद्दाख एवं जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र, कश्मीरी सभा के संयुक्त तत्वावधान में लगाया गया था। धर्मपुर विधायक विनोद चमोली, दून कश्मीरी सभा के अध्यक्ष एसके धर, लद्दाख एवं जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र उत्तराखंड के प्रदेश संयोजक बलदेव पाराशर और संरक्षक सुशील कुमार ने प्रमाणपत्र दिए। पाराशर के मुताबिक, 650 में से 320 परिवारों को डोमिसाइल दिए गए। इस मौके पर अशोक कौल, राजेंद्र कुमार, अरुण कोहली, सुरेंद्र बाली मौजूद थे।


वही कश्मीर के लालचौक के पास एक मोहल्ले की मोना कौल 1990 में 25 साल की थीं, जब उन्हें घर-बार छोड़कर दून आना पड़ा। उस समय उनकी गोद में नौ माह का बच्चा था। पति रमेश कौल आसाम में ओएनजीसी में तैनात थे। गुरुवार को जब कश्मीर का डोमेसाइल हाथ आया तो मोना की यादें ताजा हो गईं। वे बोलीं, जब भी जम्मू-कश्मीर में चुनाव हों, सरकार विशेष बसों की व्यवस्था करे। श्रीनगर की निर्मला धर की भी कमोबेश यही राय थी। उधर, अब भी कई परिवार ऐसे हैं, जिनके डोमिसाइल में दिक्कत हो रही है। इनमें प्रेमनगर व्यापार मंडल अध्यक्ष राजीव पुंज की मां और पार्षद कोमल बोहरा के परिजन भी हैं।

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बता दें कि पाराशर बोले, दून में यह दूसरा कैंप है। नब्बे के दशक से कश्मीर से जाने वाले शरणार्थियों के अलावा 1947 में पीओके से आने वाले शरणार्थियों को भी डोमिसाइल दिए गए। अधिकांश लोग प्रेमनगर, रेसकोर्स, डोईवाला और विकासनगर में रह रहे हैं।

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