विकासनगर तहसील के अज्ञात कर्मचारियों पर भी लगे आरोप, बची हुई भूमि रिकॉर्ड में नहीं की गई थी अपडेट
देहरादून। अरबों रुपये के रजिस्ट्री घोटाले में पुलिस द्वारा अब तक 20 आरोपितों को जेल भेजा जा चुका है। घोटाले के पहले चरण में 13 मुकदमे दर्ज हो चुके थे, जिनमें पुलिस और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की सक्रियता जारी है, साथ ही कोर्ट में भी मामले की सुनवाई चल रही है। अब इस फर्जीवाड़े के दूसरे चरण में, स्टांप एवं पंजीकरण विभाग द्वारा गठित एसआईटी की सिफारिश पर प्रेमनगर पुलिस ने दो और एफआईआर दर्ज की हैं। ये दोनों मामले विकासनगर तहसील से जुड़े हैं, जिनमें सरकारी भूमि को अवैध तरीके से बेचने का आरोप है।
सरकारी भूमि की बिक्री: झाझरा प्रकरण
पहला मामला विकासनगर तहसील के झाझरा गांव से संबंधित है, जहां सरकारी भूमि को बेचा गया। आरोप है कि इंदिरा नगर, देहरादून निवासी बलविंदरजीत सिंह ने अपनी 3.57 हेक्टेयर भूमि का वर्ष 2002 से 2004-05 के बीच विभिन्न व्यक्तियों के साथ विनिमय और विक्रय किया। इस लेन-देन के बाद सिंह के पास केवल 60 वर्गमीटर भूमि शेष रह गई थी। बावजूद इसके, उन्होंने 1.977 हेक्टेयर भूमि बेच दी, जिसमें से 0.846 हेक्टेयर भूमि एक संस्था, इंडियन सोसाइटी फॉर ह्यूमन वेलफेयर को बेची गई। जांच में सामने आया कि इस भूमि के खसरा नंबर के अंतर्गत कुल 15.9440 हेक्टेयर जमीन दर्ज थी, जिसमें वन विभाग, टौंस नदी, और अन्य सरकारी श्रेणी की भूमि शामिल थी। स्पष्ट रूप से बेची गई अतिरिक्त भूमि सरकारी संपत्ति थी, जिसे अवैध रूप से कब्जे में लेकर विक्रय किया गया। एसआईटी ने इस मामले में तहसील के अज्ञात कर्मचारियों को भी दोषी पाया, जिन्होंने शेष भूमि की जानकारी को अपडेट नहीं किया था।
गोल्डन फॉरेस्ट की भूमि पर फर्जीवाड़ा
दूसरा मामला गोल्डन फॉरेस्ट की भूमि से जुड़ा है, जिसे 1997 में देहरादून के उपजिलाधिकारी द्वारा राज्य सरकार में निहित कर दिया गया था। इसके बावजूद, 2002 में इस भूमि को आईआरवाईवी फिनकैप डेराबसी (पटियाला) नामक कंपनी के प्रतिनिधि संजय कुमार ने आकांक्षा कंस्ट्रक्शन कंपनी, चकराता रोड, देहरादून को बेच दिया। जांच के दौरान पता चला कि जिस भूमि को बेचा गया, वह पहले ही राज्य सरकार की संपत्ति घोषित हो चुकी थी और संजय कुमार के पास इस विक्रय के लिए कंपनी का कोई अधिकृत पत्र भी नहीं था। विक्रय की गई भूमि 4.74 एकड़ थी, लेकिन दस्तावेजों में इसे 5.86 एकड़ दिखाया गया। आकांक्षा कंस्ट्रक्शन कंपनी पर भी आरोप है कि उनके पास इस भूमि को खरीदने का कोई अधिकार नहीं था। इस मामले में भी एफआईआर दर्ज की गई है।
तहसील कर्मचारियों की लापरवाही
एसआईटी ने इस जांच में पाया कि भूमि विनिमय और विक्रय के बाद भी रिकॉर्ड में शेष भूमि का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया था। इस लापरवाही के लिए तहसील के तत्कालीन कर्मचारियों को जिम्मेदार ठहराया गया है। अब इस मामले में बलविंदरजीत सिंह और संबंधित कर्मचारियों के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज किया गया है। यह घोटाला उत्तराखंड की सरकारी संपत्ति के दुरुपयोग और गलत तरीके से भूमि विक्रय के गंभीर मामलों को उजागर करता है। पुलिस और ईडी की जांच में आगे और भी खुलासे होने की संभावना है।
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