देहरादून साइबर क्राइम मामले में एसटीएफ ने फर्जी आईडी, मोबाइल नंबर, व्हाट्सएप, टेलीग्राम और प्रतिष्ठित कंपनियों से मिलते-जुलते ईमेल पते का उपयोग कर लोगों को ठगने वाले तीन युवकों को दिल्ली से गिरफ्तार किया है। इनमें से दो युवक कानपुर, यूपी के रहने वाले हैं, जबकि तीसरा दिल्ली का निवासी है। इन तीनों ने मिलकर एक दून निवासी युवक से विदेश में नौकरी दिलाने के नाम पर 23 लाख रुपये ठगे थे। इस ठगी में आरोपियों के तार दुबई, चीन और पाकिस्तान से जुड़े हुए हैं। आरोपी क्रिप्टोकरेंसी के माध्यम से धन का लेनदेन करते थे।
एसएसपी एसटीएफ आयुष अग्रवाल ने बताया कि मोहब्बेवाला निवासी एक युवक ने साइबर थाने में शिकायत की थी कि उसने पिछले साल नौकरी डॉट कॉम पर अपना सीवी अपलोड किया था। इसके बाद कुछ अज्ञात साइबर ठगों ने उससे संपर्क किया और रजिस्ट्रेशन के नाम पर 14,800 रुपये लिए। ठगों ने युवक का स्काइप एप के माध्यम से इंटरव्यू भी लिया और चयन की बात कहते हुए दस्तावेज सत्यापन, जॉब सिक्योरिटी, फास्ट ट्रैक वीजा और आइलेट्स एग्जाम के नाम पर उससे 22 लाख रुपये से ज्यादा की राशि अपने खातों में ट्रांसफर करवा ली। जब ठगों ने यह कहा कि आइलेट्स एग्जाम के लिए रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है और अब तीन महीने बाद प्रक्रिया पूरी करनी होगी, तब युवक को ठगी का एहसास हुआ।
साइबर थाना पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए दिल्ली के जनकपुरी वेस्ट इलाके से तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार आरोपियों के नाम अलमास आजम और अनस आजम हैं, जो कानपुर के जाजमऊ क्षेत्र के रहने वाले हैं, जबकि तीसरा आरोपी सचिन अग्रवाल दिल्ली के विकासपुरी क्षेत्र का निवासी है। आरोपियों के पास से छह मोबाइल फोन, 42 बैंक पासबुक और 16 सिम कार्ड बरामद किए गए हैं।
ऐसे करते थे ठगी
आरोपी फर्जी आईडी, मोबाइल नंबर, व्हाट्सएप, टेलीग्राम और प्रसिद्ध कंपनियों से मिलते-जुलते ईमेल पते का उपयोग कर नौकरी चाहने वालों से संपर्क करते थे। ठगी के लिए वे भोले-भाले लोगों के बैंक खाता विवरण का दुरुपयोग करते थे। आरोपी, लोगों के ओरिजिनल आधार कार्ड, पैन कार्ड आदि लेकर फर्जी बैंक खाते खोलते थे, जहां ठगी की गई रकम जमा की जाती थी। इन खातों के दस्तावेज और एसएमएस अलर्ट नंबरों को दुबई भेज दिया जाता था, जहां से धन का लेनदेन क्रिप्टोकरेंसी यूएसडीटी में होता था।
आरोपियों का दुबई में स्थित मास्टरमाइंड (जो पाकिस्तानी एजेंटों से जुड़ा हुआ है) भारतीय सहयोगियों को जोड़ता था, जो पूरे बैंक खातों की किट प्राप्त करते थे। वहीं, चीनी एजेंट व्हाट्सएप और टेलीग्राम के माध्यम से क्रिप्टो भुगतान और यूपीआई विवरणों के लिए निर्देश देते थे। गिरोह के अन्य सदस्य बिनांस और ट्रस्ट वॉलेट जैसी क्रिप्टो प्लेटफार्म से यूएसडीटी खरीदते थे और उसे बिनांस वॉलेट में ट्रांसफर करते थे। भारतीय ठग विदेशी ठगों से 90 रुपये प्रति यूएसडीटी के बजाय 104 रुपये प्रति यूएसडीटी की दर पर पैसा प्राप्त करते थे। इस मुनाफे को आपस में बांट लिया जाता था, जिसमें सात रुपये सचिन को और बाकी सात रुपये आजम को दिए जाते थे। आजम भाइयों को प्रत्येक फर्जी खाते के लिए अतिरिक्त कमीशन भी मिलता था।
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पुलिस अब इस साइबर गिरोह के अन्य सदस्यों की तलाश कर रही है।