उत्तराखंड की गढ़वाल और अल्मोड़ा संसदीय सीटें इस बार के लोकसभा चुनाव में खासा चर्चित हैं। इन सीटों पर महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा रही है, जो भारतीय राजनीति के परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। 19 अप्रैल को हुए चुनाव में कुल 83,37,914 मतदाताओं में से 57.24 प्रतिशत यानी 47,72,484 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। सबसे अधिक 63.53 प्रतिशत मतदान हरिद्वार लोकसभा में हुआ, जबकि सबसे कम 48.82 प्रतिशत मतदान अल्मोड़ा लोकसभा सीट पर दर्ज किया गया।
गढ़वाल में महिलाओं की बढ़ती हिस्सेदारी
गढ़वाल लोकसभा सीट पर कुल 13,69,388 मतदाता थे, जिनमें से 7,17,834 ने अपने मत का प्रयोग किया। इसमें 3,79,833 महिलाएं, 3,37,993 पुरुष और 8 थर्ड जेंडर शामिल थे। गढ़वाल में महिलाओं का पुरुषों से ज्यादा मतदान करना एक महत्वपूर्ण संकेत है। यह दिखाता है कि महिलाओं की राजनीतिक सक्रियता और जागरूकता बढ़ रही है। यह भी स्पष्ट है कि महिलाओं की समस्याओं और उनके मुद्दों पर ध्यान देने वाले राजनीतिक दलों को इस चुनाव में फायदा हो सकता है।
अल्मोड़ा में भी महिलाओं का वर्चस्व
अल्मोड़ा लोकसभा सीट पर कुल 13,39,327 मतदाता थे, जिनमें से 3,48,378 महिलाएं और 3,05,016 पुरुषों ने वोट डाला। यह स्पष्ट करता है कि यहां भी महिलाओं ने अधिक संख्या में मतदान किया। अल्मोड़ा में महिलाओं के वोटों की अधिकता ने यह दर्शाया है कि इस क्षेत्र की महिलाएं अपनी आवाज़ को राजनीतिक मंच पर पहुंचाने के लिए जागरूक हो चुकी हैं।
टिहरी में महिला और पुरुष मतदाताओं की समान भागीदारी
टिहरी लोकसभा सीट पर कुल 15,77,664 मतदाता थे, जिनमें से 8,42,212 ने मतदान किया। यहां महिलाओं के वोट 4,20,964 और पुरुषों के वोट 4,27,234 थे। 14 थर्ड जेंडर मतदाता भी थे। टिहरी में महिला और पुरुष मतदाताओं की लगभग समान संख्या यह दिखाती है कि यहां दोनों लिंगों के लोग अपने मताधिकार के प्रति सजग हैं और वे अपने क्षेत्र के विकास के प्रति जागरूक हैं।
महिलाओं की भूमिका से चुनावी समीकरणों में बदलाव
इन तीनों सीटों पर महिलाओं की बढ़ती भागीदारी ने चुनावी समीकरणों को बदलने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। गढ़वाल और अल्मोड़ा में महिलाओं की अधिक संख्या से यह स्पष्ट है कि यहां की राजनीति में महिलाओं की भूमिका अब पहले से अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। जो राजनीतिक दल महिलाओं के मुद्दों को सही ढंग से समझकर और उन पर काम करके उनका समर्थन प्राप्त करेंगे, वही इन क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर पाएंगे।
राजनीतिक दलों के लिए नया चुनौती
महिला मतदाताओं की बढ़ती भागीदारी राजनीतिक दलों के लिए एक नई चुनौती और अवसर दोनों लेकर आई है। उन्हें अब महिलाओं के मुद्दों पर गंभीरता से विचार करना होगा और उनके लिए बेहतर नीतियां बनानी होंगी। महिला शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर ध्यान देना होगा। महिलाओं के आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण को बढ़ावा देने वाली योजनाओं को प्राथमिकता देनी होगी।
गढ़वाल, अल्मोड़ा और टिहरी जैसी सीटों पर महिला मतदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले समय में महिलाओं की भूमिका भारतीय राजनीति में और भी महत्वपूर्ण होने वाली है। यह परिवर्तन केवल उत्तराखंड तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे देश में देखने को मिलेगा। जो राजनीतिक दल इस बदलाव को समझकर अपनी रणनीति बनाएंगे, वही भविष्य में सफल होंगे।
महिलाओं की बढ़ती भागीदारी से भारतीय लोकतंत्र मजबूत होगा और यह एक स्वस्थ और समावेशी समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि 2024 के लोकसभा चुनावों में इन महिला मतदाताओं का क्या रुख रहता है और यह किस तरह से चुनाव परिणामों को प्रभावित करता है।