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उत्तराखंड में होने वाले निकाय चुनाव और पीछे खिसक गए हैं। सरकार ने प्रशासकों के कार्यकाल को तीन महीने और बढ़ा दिया है। जिसकी वजह लोकसभा चुनाव को बताया जा रहा है। कोर्ट के आदेश के बाद भी उत्तराखंड सरकार निकाय चुनाव समय पर नहीं करा पाई है।

उत्तराखंड में होने वाले निकाय चुनाव एक बार फिर पीछे खिसक गई है। निकायों में प्रशासकों का कार्यकाल सरकार के द्वारा 3 महीने और बढ़ा दिया गया है। बता दें कि पहले 2 दिसंबर को सरकार के द्वारा 6 महीने के लिए प्रशंसकों का कार्यकाल तय किया गया था। जो 2 जून तक तय था लेकिन 2 जून की तारीख आने पर सरकार के द्वारा 3 महीने के लिए और प्रसाशकों का कार्यकाल बढ़ा दिया गया है।

कोर्ट के द्वारा तय समय पर चुनाव कराने के आदेश पर भी उत्तराखंड में निकाय चुनाव तय समय पर नहीं हुआ। जिसको लेकर प्रदेश सरकार लोकसभा चुनाव को वहज मान रही है कि लोकसभा चुनाव की आचार संहिता की वजह से निकाय चुनाव में देरी हुई है। तो वहीं भाजपा का भी कहना है कि 6 जून तक लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लगी हुई है। जो देरी की वजह बनी है। लेकिन अब निर्वाचन आयोग जब भी चुनाव की तारीखों का ऐलान करेगा सरकार और पार्टी दोनों चुनाव को लेकर पूरी तरीके से तैयार है।

प्रशासकों के कार्यकाल को बढ़ने को लेकर कांग्रेस का कहना है कि शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल तो बार-बार यही बयान दे रहे हैं कि सरकार चुनाव के लिए तैयार है।

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प्रशासकों के कार्यकाल बढ़ाए जाने के बाद कई सवाल उठ रहे हैं। सरकार चाहती तो तय समय पर चुनाव हो सकते थे क्योंकि 2 दिसंबर 2023 को जब निकायों का कार्यकाल खत्म हुआ तो सरकार उससे पहले भी चुनाव कर सकती थी। इसके बाद 6 महीने के भीतर भी चुनाव कर सकती थी। लेकिन चुनाव में देरी किस वजह से हुई है इसका किसी के पास कोई सटीक जवाब नही हैं। फिलहाल चुनावों को इसकी वजह बताया जा रहा है। लेकिन सवाल यही उठ रहा है कि निकाय चुनावों के लिए अभी कितना इंतजार करना होगा ?

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