उत्तराखंड के रुद्रपुर में पॉक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस) कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील मामले में फैसला सुनाया है। कोर्ट ने दो साल पहले एक नाबालिग शिष्य के साथ दुष्कर्म के दोषी कथित पुजारी गणेशानंद जोशी उर्फ गणेश दत्त को 20 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। इसके अतिरिक्त, दोषी पर 55,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है।
भूमि10 मई 2022 को बाजपुर कोतवाली में एक व्यक्ति ने अपने 11 साल के बेटे के साथ हुए दुष्कर्म के मामले में शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायतकर्ता ने बताया कि उसका अपनी पत्नी से तलाक हो चुका था और उसका बेटा उसके साथ रहता था। लगभग तीन साल पहले उसकी मुलाकात गणेशानंद जोशी से हुई थी, जो खुद को कालाढूंगी थाना क्षेत्र के पाटकोट कुटिया मंदिर का पुजारी बताता था। गणेशानंद ने उसे यह विश्वास दिलाया कि वह उसके बेटे को सुधार देगा और उसका दाखिला गुरुकुल वृंदावन में करा देगा।
चैत्र के नवरात्रों के दौरान कथित पुजारी उनके घर आया और नौ दिन तक श्मशान में पूजा की। दसवें दिन उसने हवन पूजन किया और बच्चे के पिता को यह विश्वास दिलाया कि उसका बेटा गुरुकुल में बेहतर भविष्य पाएगा। इस बहकावे में आकर उसने अपने 11 साल के बेटे को पुजारी के साथ भेज दिया।इस दौरान, कथित पुजारी और बच्चे के बीच फोन पर बातचीत होती रहती थी। कुछ समय बाद, बच्चे ने अपने पिता को बताया कि पुजारी उसे दिनभर काम कराता था और रात में उसके साथ दुष्कर्म करता था। बच्चे ने यह भी बताया कि पुजारी ने उसके साथ 10 से 15 बार दुष्कर्म किया और किसी को बताने पर जान से मारने की धमकी दी थी।
जब बच्चे के पिता को ग्रामीणों से जानकारी मिली कि उसका बेटा परेशान है, तो वह सात मई 2022 को मंदिर पहुंचा और अपने बेटे को घर ले आया। आठ मई को बेटे ने अपनी आपबीती सुनाई, जिसके बाद पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई। पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए बच्चे का मेडिकल कराया, जिसमें दुष्कर्म की पुष्टि हुई। पुलिस ने 10 मई 2022 को कथित पुजारी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।
इस मामले की सुनवाई पॉक्सो न्यायाधीश अश्वनी गौड़ की अदालत में हुई। विशेष लोक अभियोजक ने सात गवाह और साक्ष्य पेश कर कथित पुजारी पर आरोप सिद्ध कर दिए। गवाहों और साक्ष्यों के आधार पर अदालत ने दोषी पुजारी गणेशानंद जोशी को 20 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई और 55,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
यह मामला समाज में व्याप्त उन कुरीतियों और अपराधों को उजागर करता है, जो विश्वास और धर्म के नाम पर किए जाते हैं। न्यायालय का यह निर्णय न केवल दोषी को सजा देता है, बल्कि समाज में एक संदेश भी देता है कि किसी भी प्रकार के यौन अपराधों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और दोषियों को कठोर सजा दी जाएगी। न्यायालय का यह फैसला पीड़ित परिवार के लिए एक राहत की बात है, और समाज में उन लोगों के लिए चेतावनी है जो मासूम बच्चों के साथ इस प्रकार के घृणित अपराध करते हैं। यह निर्णय हमें यह भी याद दिलाता है कि समाज के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह बच्चों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए सजग रहे।