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shani Katha : जानिए एक बार जब महादेव पर शनिदेव की दृष्टि पड़ी तो क्या हुआ।

shani Katha : जानिए एक बार जब महादेव पर शनिदेव की दृष्टि पड़ी तो क्या हुआ।

shani katha: आज हम हम आपके लिए भगवान भोलेनाथ की और शनि देव  (shani dev) की एक रोचक कहानी लेकर आये है।शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है। अपने जीवन काल में प्रत्येक व्यक्ति को शनि देव की वक्र दृष्टि का सामना करना पड़ता है। नवग्रहों में शनि देव सबसे धीरे चलने वाले ग्रह हैं और यह सभी राशियों का भ्रमण करने में 30 वर्ष का समय लगाते हैं।मनुष्य देवता दानव ऋषि मुनि सबको इनकी वक्र दृष्टि का सामना करना पड़ता है यहां तक कि एक बार भगवान शंकर को भी इनकी इन की वक्र दृष्टि का सामना करना पड़ा।

एक कथा के अनुसार एक बार शनि देव शनिदेव भगवान शंकर के घर कैलाश पर्वत पहुंचे और शनि देव ने भोलेनाथ को प्रणाम किया। भोले शंकर बोले बोलो शनि कैसे आना हुआ,तब शनि देव शनिदेव बोले प्रभु समय के चक्र के अनुसार कल मेरी वक्र दृष्टि पड़ने वाली है अर्थात कल मैं आपकी राशि में भ्रमण कर लूंगा।

बात सुन भोलेनाथ हैरान हुए और पूछा शनि तुम कब तक मेरी राशि पर रहोगे। तब शनि शनिदेव बोले प्रभु सवा पहर तक मेरी दृष्टि आप पर होगी।ऐसा कहकर शनिदेव भोलेनाथ को प्रणाम करके चले गए।अब महादेव सोचने लगे मुझे शनि की वक्र दृष्टि से बचना होगा, अगर मुझ पर शनि की वक्र दृष्टि पड़ी तो देव क्या सोचेंगे। महादेव ने एक योजना बनाई कि कल वह कैलाश छोड़ मृत्यु लोक पर चले जाएंगे और कुछ ऐसा करेंगे कि शनि की वक्र दृष्टि से वह बच जाए जाएं। अगले ही दिन भगवान भोलेनाथ मृत्यु लोक में पहुंचे और एक हाथी का रूप धर लिया। हाथी के रुप में महादेव को सारा दिन रहना पड़ा इधर उधर भटकते रहे। उन्होंने जब एक नगर में प्रवेश किया तब लोग घबराकर उन्हें भगाने लगे। हाथी के रूप में ही उन्हें जल और भोजन ग्रहण करना पड़ा।

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 दिन ढला तो महादेव ने सोचा चलो अब पूरा दिन व्यतीत हो गया है,मैं शनि की वक्र दृष्टि से बच गया। अब तो कैलाश पर लौटता हूं। ऐसा सोच कर सोचकर महादेव ने हाथी का रूप त्यागा और कैलाश को लौट गए कैलाश पहुंचते ही महादेव ने देखा कि शनि शनिदेव तो पहले से ही वहां मौजूद थे। उन्होंने महादेव को देखते ही प्रणाम किया, भोलेनाथ मुस्कुराए और बोले देखा शनि में तुम्हारी वक्र दृष्टि से बच गया। तुम अपनी वक्र दृष्टि मुझ पर नहीं डाल पाए। महादेव की बात सुन शनिदेव बोले हे “प्रभु मेरी वक्र दृष्टि से ना देव बच सके है ना मानव है ना मानव नादाना और ना ही आप बच पाए महादेव।  बोलेनाथ ने हैरान होकर पूछा वह कैसे तो शनि देव बोले प्रभु यह मेरी वक्र दृष्टि का ही प्रभाव था कि आपको अपना वास्तविक स्वरूप त्याग कर  मृत्युलोक में जाना पड़ा, इधर उधर भटकना पड़ा।पशु योनि में ही और जल ग्रहण करना पड़ा अपना निवास स्थान कैलाश छोड़ना पड़ा। जब मेरी दृष्टि आप पर पड़ी उसी पल आप उसके पात्र बन गए। यह सुन महादेव मुस्कुराए और शनि देव को गले से लगा लिया और बोले शनि तुम सही में मेरे शिष्य कहलाने के योग्य हो। साथ ही यह वरदान दिया कि नवग्रहों में तुम्हारा सर्वश्रेष्ठ स्थान होगा। धर्म के मार्ग पर चलने वाला तुम से भयभीत नहीं होगा और जल में कमल के समान सुरक्षित रहेगा। इस प्रकार शनि देव की दृष्टि का सामना सबको सब को करना पड़ता है। लेकिन जो धर्म के अनुकूल आचरण करता है, दया ,सदभावना, प्रेम और शुभ विचार रखता है वह जीवन में सभी सुख प्राप्त करता है। जो व्यक्ति शनिवार को पीपल के पेड़ में जल चढ़ाता है,काले वस्तुओं का दान करता है, गायत्री मंत्र का जाप करता है,पशु पक्षियों को अन्न और जल देता है ,चीटियों को आटा डालता है और शनि चालीसा पड़ता है और शनि देव की कथा सुनता है उस पर शनि देव शनिदेव की कृपा सदैव बनी रहती है

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