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बीते वर्ष दिल्ली और उत्तराखंड में हुए धर्म संसद में भड़काऊ भाषण देने वालों पर क्या एक्शन लिया? सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड और दिल्ली सरकार से मांगा जवाब

बड़ी खबर सुप्रीम कोर्ट से आ रही है जहां सोमवार को उत्तराखंड और दिल्ली सरकार से पूछा गया कि बीते वर्ष दोनों राज्यों में आयोजित हुए धर्म संसद में भड़काऊ भाषण देने वालों के खिलाफ पुलिस द्वारा क्या कार्रवाई की गई।जस्टिस डी.वाई.चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने सामाजिक कार्यकर्ता तुषार गांधी की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश सुनाया। वही सुप्रीम कोर्ट ने 4 हफ्तों में दोनों ही राज्यों से जवाब देने को कहा है।


आपको बता दें कि तुषार गांधी ने अपनी याचिका में आग्रह किया था कि नफरत वाले भाषणों और लोगों की पीट-पीटकर हत्या के मामलों में तय दिशानिर्देशों के अनुसार, उपरोक्त विषय में कोई कदम नहीं उठाने के लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अदालत की अवमानना संबंधी कार्रवाई की जाए।


बेंच ने कहा था कि इस विषय में वह अवमानना याचिका पर कोई नोटिस जारी नहीं कर रही है और उत्तराखंड एवं दिल्ली सरकार से केवल इस बात पर जवाब मांगा जा रहा है की वहां आयोजित धर्म संसदों में नफरत वाले भाषणों के संबंध में क्या कार्रवाई की गई। बेंच ने कहा कि उत्तराखंड और दिल्ली दोनों शपथपत्र दायर करेंगे और तथ्यात्मक स्थिति से एवं की गई कार्रवाई से अवगत कराएंगे। साथ ही बेंच ने यह भी कहा कि हाल ही में नवनियुक्त अटॉर्नी जनरल आर.वेंकटरमणि ने पद संभाला है तो इस मुद्दे को देखने में कुछ समय भी लग सकता है।


बता दे कि तुषार गांधी की तरफ से उनके वकील वकील शादान फरसत ने कहा कि वह उत्तराखंड और दिल्ली के स्थायी वकीलों को अवमानना याचिका की कॉपी सौंपेंगे। उन्होंने कहा कि गांधी, तहसीन एस पूनावाला बनाम भारत संघ (2018 के फैसले) में याचिकाकर्ताओं में से एक थे, जिसमें नफरत भरे भाषणों और लिंचिंग को रोकने के लिए दिशानिर्देश निर्धारित किए गए थे।


फरसत ने बताया कि तुषार गांधी ने उत्तराखंड और दिल्ली में ‘धर्म संसद’ में अभद्र भाषा की घटनाओं के बाद कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अवमानना ​​​​कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने कहा कि याचिका दायर करने के बाद अभद्र भाषण देने वाले दो लोगों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन सात अन्य को पुलिस ने छुआ तक नहीं था।

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वहीं याचिका में इस बात का भी जिक्र किया गया है की घटनाओं के तुरंत बाद भाषण उपलब्ध कराए गए और सार्वजनिक डोमेन में थे। लेकिन फिर भी दिल्ली पुलिस और उत्तराखंड पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि उत्तराखंड के हरिद्वार में पिछले साल 17 से 19दिसंबर को आयोजित धर्म संसद में भड़काऊ बयान दिए गए थे

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